Nov 21, 2015

संस्कृत की क्लास

संस्कृत की क्लास मे गुरूजी ने पूछा = "पप्पू इस श्लोक का अर्थ बताओ.

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन".

पप्पू = "राधिका शायद रस्ते मे  फल बेचने का काम कर रही है"

गुरूजी = मूर्ख, ये अर्थ नही होता है. चल इसका अर्थ बता,

“बहुनि मे व्यतीतानि, जन्मानि तव चार्जुन.”

पप्पू = मेरी बहू के कई बच्चे पैदा हो चुके हैं, सभी का जन्म चार जून को हुआ है.

गुरूजी = "अरे गधे, संस्कृत पढता है कि घास चरता है. अब इसका अर्थ बता:-

“दक्षिणे लक्ष्मणोयस्य वामे तू जनकात्मजा.”

पप्पू = "दक्षिण मे खडे होकर लक्ष्मण बोला जनक आजकल तो तू बहुत मजे मे है"

गुरूजी = "अरे पागल, तुझे १ भी श्लोक का अर्थ नही मालूम है क्या?"

पप्पू = "मालूम है ना"

गूरूजी = "तो आखरी बार पूछता हूँ इस श्लोक का सही सही अर्थ बताना.-

'हे पार्थ त्वया चापि मम चापि'…….! क्या अर्थ है जल्दी से बता"

पप्पू = "महाभारत के युद्ध मे श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कह रहे हैं कि……..

गुरूजी उत्साहित होकर बीच मे ही कहते हैं = "हाँ, शाबास, बता क्या कहा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से……..?"

पप्पू = "भगवान बोले अर्जुन तू भी चाय पी ले, मैं भी चाय पी लेता हूँ. फिर युद्ध करेंगे"

गुरूजी बेहोश…………


No comments:

Post a Comment