यह केवल एक सत्य है दिल में लेने की जरूरत नहीं है .......
अगर आप रास्ते पे चल रहे है और आपको वहां पड़ी हुई दो पत्थर की मूर्तियां मिले,
1) भगवान राम की
और
2) रावण की
और आपको एक मूर्ति उठाने का कहा जाए तो अवश्य आप राम की मूर्ति उठा कर घर लेके जाओगे। क्यों की राम सत्य , निष्ठा,सकारात्मकता के प्रतिक हे और रावण नकारात्मकता का प्रतिक हे।
फिर से आप रास्ते पे चल रहे हो और दो मुर्तिया मिले , राम और रावण की, पर अगर "राम की मूर्ति पत्थर" की और "रावण की सोने "की हो और एक मूर्ति उठाने को कहा जाए तो आप राम की मूर्ति छोड़ कर रावण की सोने की मूर्ति ही उठाओगे।
1) भगवान राम की
और
2) रावण की
और आपको एक मूर्ति उठाने का कहा जाए तो अवश्य आप राम की मूर्ति उठा कर घर लेके जाओगे। क्यों की राम सत्य , निष्ठा,सकारात्मकता के प्रतिक हे और रावण नकारात्मकता का प्रतिक हे।
फिर से आप रास्ते पे चल रहे हो और दो मुर्तिया मिले , राम और रावण की, पर अगर "राम की मूर्ति पत्थर" की और "रावण की सोने "की हो और एक मूर्ति उठाने को कहा जाए तो आप राम की मूर्ति छोड़ कर रावण की सोने की मूर्ति ही उठाओगे।
मतलब, हम सत्य और असत्य, सकारात्मक और नकारात्मक अपनी सुविधा और लाभ के अनुसार तय करते हे।
९९% प्रतिशत लोग भगवान को सिर्फ लाभ और डर की वजह से पूजते है।
९९% प्रतिशत लोग भगवान को सिर्फ लाभ और डर की वजह से पूजते है।
लोग क्या सोचेंगे ? ? ?
25 साल की उम्र तक हमें परवाह नहीँ होती कि "लोग क्या सोचेंगे ? ? "
50 साल की उम्र तक इसी डर में जीते हैं कि " लोग क्या सोचेंगे ! ! "
50 साल के बाद पता चलता है कि "हमारे बारे में कोई सोच ही नहीँ रहा था ! ! ! "
50 साल की उम्र तक इसी डर में जीते हैं कि " लोग क्या सोचेंगे ! ! "
50 साल के बाद पता चलता है कि "हमारे बारे में कोई सोच ही नहीँ रहा था ! ! ! "
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